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यम॒श्विना॒ नमु॑चेरासु॒रादधि॒ सर॑स्व॒त्यसु॑नोदिन्द्रि॒याय॑। इ॒मं तꣳ शु॒क्रं मधु॑मन्त॒मिन्दु॒ꣳ सोम॒ꣳ राजा॑नमि॒ह भ॑क्षयामि ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। अ॒श्विना॑। नमु॑चेः। आ॒सु॒रात्। अधि॑। सर॑स्वती। असु॑नोत्। इ॒न्द्रि॒याय॑। इ॒मम्। तम्। शु॒क्रम्। मधु॑मन्तम्। इन्दु॑म्। सोम॑म्। राजा॑नम्। इ॒ह। भ॒क्ष॒या॒मि॒ ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे पुरुष सुखी होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (इह) इस संसार में (इन्द्रियाय) धन और इन्द्रियबल के लिये (यम्) जिस (नमुचेः) जल को जो नहीं छोड़ता (आसुरात्) उस मेघ-व्यवहार से (अधि) अधिक (शुक्रम्) शीघ्र बलकारी (मधुमन्तम्) उत्तम मधुरादिगुणयुक्त (इन्दुम्) परमैश्वर्य्य करनेहारे (राजानम्) प्रकाशमान (सोमम्) पुरुषार्थ में प्रेरक सोम ओषधि को (सरस्वती) विदुषी स्त्री (असुनोत्) सिद्ध करती तथा (अश्विना) सभा और सेना के पति सिद्ध करते हैं, (तम्, इमम्) उस इस को मैं (भक्षयामि) भोग करता और भोगवाता हूँ ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य उत्तम अन्न रस के भोजन करनेहारे होते हैं, वे बलयुक्त इन्द्रियोंवाले होकर सदा आनन्द को भोगते हैं ॥३४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जनाः सुखिनो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(यम्) (अश्विना) सभासेनेशौ (नमुचेः) यो जलं न मुञ्चति तस्मात् (आसुरात्) असुरस्य मेघस्यायं तस्मात् (अधि) (सरस्वती) विदुषी स्त्री (असुनोत्) सुनोति (इन्द्रियाय) धनायेन्द्रियबलाय वा (इमम्) (तम्) (शुक्रम्) शीघ्रं बलकरम् (मधुमन्तम्) प्रशस्तमधुरादिगुणयुक्तम् (इन्दुम्) परमैश्वर्यकारकम् (सोमम्) पुरुषार्थे प्रेरकम् (राजानम्) प्रकाशमानम् (इह) अस्मिन् संसारे (भक्षयामि) भुञ्जे भोजयामि वा ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्याः ! इहेन्द्रियाय यं नमुचेरासुरादधि शुक्रं मधुमन्तमिन्दुं राजानं सोमं सरस्वत्यसुनोदश्विना सुनुतां तमिममहं भक्षयामि ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सारान्नरसभोजिनो भवन्ति, ते बलिष्ठेन्द्रियाः सन्तः सदानन्दं भुञ्जते ॥३४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे उत्तम अन्नरसाचे सेवन करतात त्यांची इंद्रिये बलवान बनतात व ती सदैव आनंदी असतात.